Tuesday, December 11, 2012

Many Happy returns of the day Yusuf Sahab.........


 


शहंशाह is 90

कल रात Faiz ने दिल्ली से फोन करके दिलीप साहब की 90वीं सालगिरह की मुबारकबाद दी और मेरी उनसे अकीदत को जानते हुए इस बाबत कुछ लिखने को कहा। इस बातचीत के बाद मैंने सोचना शुरू किया और देर रात तक सोचता रहा और बिलाखिर इस नतीजे पर पहुंच कर सो गया कि इस सूरज की रौशनी को अलफ़ाज़ में पिरोना मेरी अदबी सलाहियत से बहुत परे की बात है ...........इसके अलावा उनकी शख्सियत के तकरीबन हर पहलु पर इतना कुछ लिखा और कहा जा चुका है कि किसी नयी चीज़ की गुंजाईश नज़र नहीं आती ............लेकिन चूँकि मैं फैज़ से वादा कर चुका हूँ इसलिए बहोत टटोलने के बाद कुछ ऐसी बातें याद आयीं जो मैंने उनके बारे में पढ़ी या सुनी हैं और जो शायद बहुत लोगों को मालूम न हों।

युसूफ खान से दिलीप कुमार होने की चंद वुजुहात में से एक अपने वालिद का का खौफ भी था। ये उस दौर की बात है जब फिल्मों में काम करना तो दूर फिल्में देखने तक पर पाबन्दी हुआ करती थी दिलीप साहब एक बहोत ही रिवायती खानदान से ताल्लुक रखते थे....... अपनी पहली फिल्म sign करने के बहुत दिन बाद तक उन्होंने ये बात घरवालों से छुपाई रखी। नैनीताल/पूना में उस दौर की superstar देविका रानी से उनकी इत्तेफाक़न मुलाक़ात हुई और वो युसूफ साहब के अंदाज़ से इतना मुतास्सिर हुईं की उन्होंने फिल्मों में काम करने की पेशकश कर दी। युसूफ साहब अपने अब्बा के खौफ और traditional background के चलते बहोत optimistic नहीं थे लिहाज़ा फ़ौरन हाँ नहीं कर सके। कुछ वक़्त बाद जब वो बॉम्बे गए तो देविका रानी से मुलाक़ात की और उनकी सिफारिश पर ज्वर भाटा 1944 में sign करी........ उन्हें Short list करके 3 नाम सुझाये गए, जहाँगीर, वासुदेव और दिलीप, और युसूफ साहब ने आखरी तजवीज़ को चुना इस तरह फिल्म इंडस्ट्री को ये नायब तोहफा मिला। फिल्म रिलीज़ होने के काफी दिन बाद तक उनके अब्बा को ये खबर नहीं थी की उनका बेटा उनके मुताबिक नौटंकी वाला हो गया है।

Sir David Lean जब Lawrence of Arabia बना रहे थे तब उन्होंने शेर अली के रोल के लिए तकरीबन 2 साल दिलीप साहब का इंतज़ार किया और उनके इनकार के बाद Egyptian actor Omar Sharif को कास्ट किया जिनका बाद में हॉलीवुड की बड़ी हस्तियों में शुमार हुआ।

50's में लगातार बहोत सी Tragic फिल्मों में काम करने के और tragedy king का खिताब पाने के बाद उनकी ज़ाती ज़िंदगी भी मुतास्सिर होने लगी तो psychiatrist के कहने पर उन्होंने Aan , Kohinoor,Azaad जैसी light फिल्म्स कीं और कॉमेडी में भी झंडे गाड़ दिए।

दिलीप साहब के professional perfectionism की काफी मिसाले हैं। फिल्म कोहिनूर के मशहूर गाने "मधुबन में राधिका नाचे रे" की शूटिंग के लिए उन्होंने बाकायेदा सितार बजाना सीखा और उंगलिया ज़ख़्मी कीं। गंगा जमुना की शूटिंग से पहले वो चंबल घाटी में जाकर रहे, वहां के लोगों का रहन सहन और ज़बान सीखी। नया दौर के लिए उन्होंने एक तांगे वाले से दोस्ती की और उसका अंदाज़ सीखा।

दिलीप साहब को Method Actor और Institution जैसे खिताब दिए गए, इस सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख़ खान ने खुद को इस institution का तालिब करार दिया। उनको institutionबनाने में उनकी अदाकराना सलाहियतों के अलावा अदब, sports और फलसफे पर उनका अबूर भी है। अमूमन देखा गया कि बहुत अच्छे फनकार भी महज़ अच्छे अदाकर बनकर रह गए और पैसा कमाने की होड़ और फ़िल्मी दुनिया की चमक धमक ने उनकी दूसरी सलाहियतों को दबा दिया। दिलीप साहब ने अपनी ज़ाती और पेशेवराना ज़िन्दिगियों में तवाजुन बरक़रार रखा जिसके चलते काफी कम फिल्में कीं। वो बहुत से mushairon और अदबी महफिलों की रौनक बने। कुछ mushairey ऐसे भी देखने में आये जिनमे शायरों से ज्यादा लोग दिलीप कुमार की शीरीं उर्दू और उसकी अदाएगी के अंदाज़ से मखमूर हो गए.......... उनके वजूद का वज़न इस mushaire की विडियो में शायरों और public की दाद से महसूस किया जा सकता है। http://youtu.be/7gfsWMJ2BB0.

काफी अरसे पहले मैंने उनकी एक तक़रीर कैसेट पर सुनी थी जिसमें उन्होंने लता मंगेशकर को Royal Albert Hall में एक प्रोग्राम के दौरान introduce कराया था। इस तक़रीर के ताने बाने पर और इसके अलफ़ाज़ को इधर उधर पिरो कर मैंने बहोत से stage programs conduct किये और वाह वाही लूटी है खुशकिस्मती से मुझे ये तक़रीर नेट पर मिल गयी और इसके ढूँढने में इससे मिलती जुलती एक और शाहकार तक़रीर भी मिल गयी इनके Links पर click करके इन्हें देखा जा सकता है http://youtu.be/O0yfauScLTU and  http://youtu.be/g12quIHAJjI.

अवाम में उनकी मकबूलियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है के 80's के शुरू में हमारे आबाई वतन मेरठ में एक मर्तबा सायेरा बानो के pregnant होने की खबर फैल गयी, इस खबर से खुश होकर दिलीप साहब के शैदाइयों ने बिरयानी और ज़र्दा देघों में बनवा कर बाँटना शुरू कर दिया।इसके अलावा उनके यहाँ औलाद होने के लिए बेशुमार लोगों ने मन्नतें मांगीं और दुआएँ करवाईं।

एक मरतबा एक सफ़र के दौरान जिस जहाज़ में दिलीप साहब सफ़र कर रहे थे कुछ ख़राब हो गया और कराची में उतरना पड़ा, जहाज़ की मरम्मत के दौरान लॉबी में दिलीप साहब के होने की खबर फैल गयी और एक हुजूम वहां इकठ्ठा हो गया। लॉबी के देख रेख वालो मुलाज़िमों ने लॉबी का दरवाज़ा खोल दिया और दिलीप साहब से मिलने के चक्कर में वहां अफरा तफरी मच गयी। अगले दिन इंतेजामिया ने इन दो बेचारे मुलाज़िमों को suspend कर दिया।

दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हुए जिन्होंने इज्ज़त और शोहरत की बुलंदियों को छुआ, कुछ देर वहां रहे और फिर गायब हो गए। बहुत कम लोग ऐसी हुए जिनकी इज्ज़त और शोहरत ताउम्र बरक़रार रही। इस पैमाने पर माशाल्लाह आज 90 बरस की उम्र में में भी युसूफ खान पूरे उतरते हैं। आवामी जिंदगी से किनाराकशी करने के बावजूद अब भी लोग उनके दीवाने हैं। पिछले साल उनकी 89वीं सालगिरह के जश्न पर पूरी film industry जमा हुई और उनसे अपनी अकीदत ज़ाहिर की (Video link http://youtu.be/A8z-hJLLmFU) और इससे पहले उनकी महाराष्ट्र में ज़ेरे तामीर फिल्म म्यूजियम में रखने के लिए युसूफ साहब और सायेरा बानो के हाथों के निशानात लिए गए। (Video link http://youtu.be/A8z-hJLLmFU).

युसूफ साहब यकीनन वो शहंशाह हैं जिसने बिना तख़्त-ओ-ताज बरसा बरस लोगों के दिलों पर हुकूमत की है और वो Indian sub-continent के तारीख का हिस्सा हैं और मेरी खुदा से दुआ है वो सलामत रहें सेहतमंद रहें आमीन ............आखिर में एक शेर उनकी नज़र और इजाज़त

क्या तजल्ली है के खुर्शीद-ए-फलक चक्कर में है

नूर है मरकज़ पे लेकिन रौशनी मंज़र में है

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