Thursday, May 14, 2015

EK DOST.......PURANA SA


रेडियो
अपने दौर का अजूबा और Status Symbol समझा जाने वाला ये आला अपने शुरुआती वक़्त में ही हमारे घर आ गया और बहुत ही एहतियात के साथ कपड़े से ढक कर कार्निस पर रखा गया था। जिन गिने चुने प्रोग्राम को सुनने की हम भाई बहनों को इजाज़त थी उनमें से सबसे मक़बूल Binaca Geetmala बुध ki रात 8 से 9 बजे के बीच आता था जिसका  हम सब बहुत बेसब्री से  इंतज़ार करते और शहद की मख्खियों की तरह रेडियो के गिर्द जम जाते। Ameen Sayani शायद रेडियो के पहले और आखरी सुपरस्टार थे, उनके बाद भी बहुत से लोगों ने अपनी जगह बनाई लेकिन जिस मुक़ाम को आप ने छुआ वो कोई न पा सका। हालाँकि जसदेव सिंह और सुशील दोषी का क्रिकेट कमेंटरी में कोई सानी नहीं था लेकिन Ameen Sayani की तरह इनके पास fan following नहीं थी।
रेडियो का reception आजकल की तरह साफ नहीं था और आवाज़ रुक रुक कर लहरों में आती थी , इसके बावजूद Binaca Geetmala के दौरान एक घंटे रेडियो के पास से कोई  हिलता नहीं था। साल के आखरी episode का एहतेराम ईद, बकरीद से कम नहीं था , आखरी पायदान के सरताज गीत पर शर्त तक लग जाती थी और अपनी पसंद के गीत को न चुने जाने पर  बाक़ायदा अफ़सोस और कई  दिन तब्सेराह होता था।  मेरी याद में फिल्म "हम किसी से कम नहीं " का "क्या हुआ तेरा वादा " लगातार २ साल तक आख़री पायदान पर रहा। ...................
रेडियो का transistor की शक्ल लेते ही ये  इतना handy  हो गया के लोग इसको गोद में लेकर घूमने लगे.……  भय्या को जैसे पिछले जनम का बिछड़ा हुआ साथी मिल गया। रात के सोने के कुछ घंटों को छोड़ कर , इन्तहा ये कि  bathroom तक  में ये भाई के साथ रहता था।
मैं भाई के साथ बाहर  का कमरा शेयर करता था लिहाज़ा मुझे उनके रेडियो के जुनूनी शौक़ से होकर कुछ यूँ गुज़ारना हुआ के ये शौक़ मेरे शऊर में भी दाखिल हो गया।  भाई का मामूल था, सोने से पहले कम से कम  2 घंटे बिस्तर पर लेट कर जासूसी दुनिया या कोई और रिसाला ज़रूर पढ़ते और बराबर में मुस्तक़िल रेडियो चलता रहता थ………… कुछ दूर  मैं अपने बिस्तर पर कोर्स की किताब से जूझता होता था। .... लिहाज़ा पढ़ाई और गानों का combination यहाँ से जो शुरू हुआ ख़त्म नहीं हुआ। ……पढ़ाई ख़त्म हो गयी मगर रेडियो साथ  साथ बहुत दूर तक चला  .......... भैया के पड़ोस में साल दर साल यही सिलसिला रहा। 9.30 से 10.30 तक विविध भारती पर संगम फिर 10.30 से 11.30 तक उर्दू सर्विस के फ़र्माइशी गीत हमारे सोने के निसाब में शामिल थे।........... रात के इस पहर में मौसीक़ी का अपना नशा है .......नींद का ख़ुमार और मखमली नग़मों का समागम सिर्फ महसूस किया जा सकता है बयान नहीं …………मैं बहुत अर्से तक इस जादुई अहसास से गुज़रा हूँ ……… मेरी शायराना तबियत में शायद इस तजुर्बे का बड़ा हाथ है। ……    
मेरा बिस्तर एक बड़ी खिड़की से सटा हुआ था जो बाहर छोटे से लॉन में खुलती थी जिसमें अम्मा ने रात की रानी, चमेली और गुलाब के पेड़ लगाये  हुए थे , इनके फूलों की महक जब बारिश की बौछार और  मिटटी की सोंधी खुशबू से मिलकर आती और लता के "कहे झूम झूम रात ये सुहानी " (https://youtu.be/obkYZTAR3Uw) के सुरों से मिलती तो रोमानी उम्र का  मेरा ज़हन तख़य्युल की परवाज़ पर सुरूर में डूबा हुआ न जाने किन किन मक़ामात से होता कब नींद की आग़ोश में चला जाता पता नहीं चलता। ....... 
यह ख़ुदा की क़ुदरत है कि कुछ खुशनुमा लम्हात सोच में  यूँ चस्प हो जाते हैं के जब कभी  उनसे मिलते जुलते माहौल से गुज़ारना हो तो  वो ज़िंदा हो जाते हैं। अब भी कभी भूले भटके किशोर (https://youtu.be/oVEVzGM2AVs) , मन्ना डे (https://youtu.be/f1DZxkiMjRo) या मुकेश (https://youtu.be/vswCQxiTxAc) के इन गानों को सुनता हूँ तो उसी सुरूर उसी ख़ुशबू का एहसास होता है और जी वापस उसी वक़्त में  लौट जाने को चाहता है। …
गानों के शौक़ के अलावा भय्या को क्रिकेट का भी जुनूनी शौक़ था बल्कि अब तक है। ................ उनकी चारपाई के क़रीब अलमारी में मुख्तलिफ नस्लों के दो तीन छोटे transistors " do not disturb " की पोजीशन  में रखे होते थे ये ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज में चल रही क्रिकेट सीरीज के लाइव ब्रॉडकास्ट के लिए positioned थे . …… हलकी सी पर्दे की लहर से भी अक्सर उनकी position हिल जाती थी और हम छोटे भाई बहनों को उनकी अलमारी में घुसपैठ के इलज़ाम  से दोचार होना पड़ता था। ……
सालों साल क्रिकेट और रेडियो का चोली दामन वाला साथ रहा। ……जो जगह अब television telecast ने ले ली है वो कभी रेडियो की थी ………लोग दीवानगी को हद तक transistors से चिपके हुए कमेंटरी सुनते पाये जाते। ……दफ्तरों में, दुकानों पर, बसों,रेलों में सिर्फ कमेंटरी चल रही होती थी....... हमारे स्कूल में भी कुछ अच्छी हैसियत वाले बच्चे छोटे छोटे transistors बस्तों में छिपा कर ले आते और period ख़त्म होते ही जल्दी से स्कोर पता चल जाता  ….... interval में हम लोग बिजली के खम्बों के पास transistors लेकर खड़े हो जाते थे क्यूंकि खम्बे ऐन्टेना का काम करते थे और उनके क़रीब जाकर रिसेप्शन साफ और आवाज़ तेज़ हो जाती थी। ………कई बार ये ट्रांसिस्टर्स स्कूल की टीचर्स ज़ब्त भी कर लेती थीं... जो बहुत मिन्नतों और डांट डपट के बाद वापस मिलते थे ……… क्रिकेट के आँखों देखे हाल को जसदेव सिंह और सुशील दोषी ने art बना दिया था। ................ उनकी कमेंटरी सुनकर बिलकुल ऐसा लगता था जैसे हम live मैच देख रहे हों। ……… पूरे साल में एक क्रिकेट सीरीज़ होती थी और सर्दियों की  धूप में लेटकर कमेंटरी सुनने का अपना ही मज़ा था। ..........    
उधर दूसरे छोर पर आँगन में (सर्दियों में बरामदे में ) बाबूजी अम्मा की चारपाइयाँ बिछती थीं , बाबा के सिरहाने उनका फिलिप्स का ट्रांजिस्टर BBC की उर्दू सर्विस की नशरियात शुरू होने से ख़तम होने तक पूरी दुनिया के सियासी और समाजी ताने बाने का बेरहम dissection करता रहता था और अम्मा के अलावा किसी में हिम्मत नहीं थी जो उनसे ज़रा सी आवाज़ कम करने के लिए कह सकता। ……लिहाज़ा BBC Programs की Signature tunes (https://youtu.be/GDQEaw4BejY) , उनके titles और Anchors हमें हिफ़्ज़ हो गए। … मार्क तुली और रज़ा अली आब्दी की आवाज़ें मैं सोते में भी पहचान सकता हूँ। ……………सुबह में स्कूल जाने से पहले बीबीसी की खबरें भी  हमारे routine में शामिल थीं। …… 
घर से निकलने के बाद मुलाज़मत के दौर में रेडियो सालों साल मेरा हमसफ़र रहा। …… बिहार में अमझोर के नक्सली इलाक़े में, पानीपत में दहशतगर्दी के दौर में और दिबियापुर के जंगल में प्रोजेक्ट्स की postings की दौरान transistor मेरा सबसे अच्छा दोस्त था। ……… इसमें मुकम्मल दुनिया थी.... खबरें, गाने, कमेंटरी सब कुछ इस छोटे से डिब्बे में था। ………
बीच बीच में रेडियो पर  टेप रिकॉर्डर ने हमले किये, कुछ कामयाब  भी हुआ लेकिन इसका बदल साबित न हुआ। …रेडियो अपने मक़ाम पर क़ायम है।  हालाँकि घरों से निकल कर अब ये गाड़ियों में आ गया है। … भीड़ भाड़ वाली सड़कों पर FM radio के बिना सफर नामुमकीन सा लगता है.......... आजकल की cars में inbuilt CD players हैं लेकिन रेडियो के AM/FM  bands की program variety से इनकी मज़बूत टक्कर है। … खास तौर पर FM पर RJ's अपने  दिलकश अंदाज़  से ट्रैफिक में फंसे होने की झुंझलाहट को बहुत  हद तक कम कर देते हैं। ................
कहानी मुख़्तसर ये के जब तक मुस्तक़िल हमसफ़र नहीं नहीं आया था रेडियो ने दिल बहलाया था ………   कभी हंसाया कभी रुलाया था। ....... वाह ये तो शेर हो गया।.............................